नई टिहरी नगर के शिखर पर पुलिस अधीक्षक कार्यालय समीप स्थित है पंचदेव मन्दिर। नगर की तरह ही पंचदेव मन्दिर भी ज्यादा पुराना नहीं है। मन्दिर की स्थापना के विषय में मन्दिर के पुजारी श्री मुनेन्द्र दत्त उनियाल जी के अनुसार टिहरी बांध परियोजना के कारण जब टिहरी नगर का विस्थापन होने लगा तो पहाड़ी की ढाल पर नये नगर की स्थापना करने से पूर्व टिहरी बांध परियोजना के श्री डी.के. गुप्ता जी ने पहाड़ी के शिखर पर एक भव्य मन्दिर की स्थापना कराई ताकि नये नगर का निर्माण कार्य निर्विघ्न किया जा सके। मन्दिर पूर्ण होने के उपरान्त संवत २०५० दिन सोमवार दिनांक १८-अक्टूबर-१९९३ को श्री एस० पी० सिंह अध्यक्ष एवं प्रबन्ध निदेशक टिहरी जल विकास निगम के द्वारा मन्दिर की मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा की गई तथा मन्दिर का कार्यभार तथा व्यवस्था-प्रबन्धन मन्दिर के पुजारी श्री मुनेन्द्र दत्त उनियाल जी के सुपुर्द कर दिया गया। उनियाल जी के अनुसार मंदिर में पांच देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं जिसके कारण मन्दिर का नाम पंचदेव मन्दिर पड़ा। मन्दिर के अन्दर तीन कक्ष बने हैं जिनमें सामने वाले कक्ष में भगवान शिव, दायीं तरफ वाले कक्ष में माता लक्ष्मी तथा विघ्नहर्ता गणेश और बायीं तरफ वाले कक्ष में माता भगवती की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं। मन्दिर में हनुमान जी की एक मूर्ति तथा एक शिवलिंग भी स्थापित है। मन्दिर की निर्माणकला आधुनिक मन्दिरों की तरह है। मन्दिर के बाहर तीन स्तंभों पर खड़े एक छत्र के नीचे केसरिया हनुमान की एक सुन्दर मूर्ति स्थापित है। मन्दिर व मन्दिर परिसर को देखकर लगता है कि निर्माणकर्ता इकाई ने मन्दिर के निर्माण में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मन्दिर परिसर से चारों तरफ के मनोरम दर्शन तथा सुदूर गिरिराज हिमालय के विहंगम दर्शन होते हैं। पंचदेव मन्दिर के ठीक पीछे सूरी देवी का मन्दिर हैं पुजारी श्री मुनेन्द्र दत्त उनियाल जी के अनुसार यह एक बहुत प्राचीन मन्दिर है। पहले यहां पर एक छोटा सा मन्दिर हुआ करता था लेकिन बाद में उसका जीर्णोद्धार करके नया मन्दिर बना दिया गया। कहा जाता है कि इस मन्दिर की स्थापना माननीय टिहरी नरेश स्वर्गीय श्री नरेन्द्रशाह जी द्वारा ग्राम सभा पीपली के ग्रामीणों के आग्रह पर कराई गई थी। सूरी माता को पनियारी देवी के नाम से भी जाना जाता है मान्यता है कि आस-पास के क्षेत्रों में जब वर्षा नहीं होती थी तो ग्रामीण पनियारी देवी (माता सूरी देवी) की उपासाना करते थे जिसके बाद वर्षा अवश्य होती थी। हालांकि इस तरह के प्रसंग उत्तराखण्ड में कई मन्दिरों के बारे में सुनने को मिलते हैं परन्तु आस्था और श्रद्धा से जुड़ा प्रकरण होने के कारण इस तरह के तथ्य सत्य प्रतीत होते हैं। इसके आलावा पुजारी श्री मुनेन्द्र दत्त उनियाल से मन्दिर की पौराणिकता से संबन्धित कोई जानकारी नहीं दे पाये। मन्दिर परिसर में बैसाख मास के ५ गते को एक छोटे से मेले का अयोजन होता है जिसमें स्थानीय निवासी माता के दर्शनकर कृतार्थ होते हैं। इसके अलावा प्रत्येक सोमवार, श्रावण मास के सोमवार तथा नवरात्रों में स्थानीय निवासी प्रसाद चढ़ाने तथा दर्शन करने आते हैं।
नईटिहरी सांईचौक से कालेज रोड़ पर लगभग १ किलोमीटर चलने के बाद ९सी मुहल्ला मौलधार में सड़क के बायीं तरफ एक मन्दिर का मुख्यद्वार दिखाई देता है। मुख्यद्वार से प्रवेश कर कुछ सीढ़ियां उतरने के बाद हनुमान मन्दिर दिखाई देता हैं। पुरा...
कुंजापुरी शक्तिपीठ ५२ शक्तिपीठों में से एक है। मन्दिर तक पहुंचने के लिये तीर्थनगरी ऋषिकेश से टिहरी राजमार्ग पर पहले लगभग २३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित हिन्डोलाखाल नामक एक छोटे से पहाड़ी बाजार तक का सफर तय करना पड़ता है, जहां ...
नई टिहरी-चम्बा मोटर मार्ग पर नई टिहरी से लगभग ३ किलोमीटर बाद सुरसिहं धार पर मुख्य मार्ग से एक संकरी सी सड़क नीचे ढाल की तरफ जाती है इसी सड़क पर लगभग डेढ़ किलोमीटर चलने के बाद ग्राम कण्डा (सारजूला पट्टी, विकासखण्ड चम्बा) में स...
सरस्वती शिशु मन्दिर बौराड़ी नई टिहरी के पीछे स्थित है लक्ष्मी-नारायण मन्दिर। पुरानी टिहरी नगर में अन्य मन्दिरों की भांति लक्ष्मी-नारायण मन्दिर भी राजा के अधीनस्थ था। टिहरी बांध परियोजना के कारण जब नगर का विस्थापन होने...
सत्येश्वर महादेव का मन्दिर सेवन-डी, बौराड़ी नई टिहरी की ढाल पर स्थित है, मन्दिर परिसर बहुत ही अच्छे और तीन तरफ से खुले एक स्थान पर है जो संभवतया नई टिहरी के सभी मुख्य स्थानों से साफ दृष्टिगोचर होता है। मन्दिर के पुजारी महन्...
नई टिहरी नगर के मध्य में स्थित नवदुर्गा मन्दिर नगर के सभी मन्दिरों मे सबसे भव्य और विशाल है। पुरानी टिहरी में अन्य मन्दिरों की भांति श्रीबदरीनाथ-केदारनाथ मन्दिर भी राजा के अधीनस्थ था। टिहरी बांध परियोजना के कारण जब नगर का ...